इंदौर। कमना नेहरू प्राणी संग्रहालय (इंदौर चिडिय़ाघर) में बाघ लक्की का जन्म 2014 में हुआ था। लक्की की मां सफेद बाघिन शिनानी थी। जबकि पिता जंगलों से आया बी-1 था। शिवानी ने लक्की के साथ दो और शावकों को जन्म दिया था।
लेकिन पिंजरे में ही उसने अपने दो शावकों को मार दिया था। वहीं लक्की को भी उसने बूरी तरह से घायल कर दिया था। जिस समय वो अपने बच्चों को मार रही थी उसके कीपर ने देख लिया था और तुरंत उसे हटाया था, ऐसे में जब कुछ दिनों के ही इन शावकों को पिंजरे से बाहर निकाला गया था, उसमें से दो की मौत हो चुकी थी, लेकिन एक बच गया था। अपनी ही मां के हाथों मरने से बचे इस बाघ का नाम चिडियाघर के कर्मचारियों ने लक्की रखा था। लक्की को चिडिय़ाघर के प्रभारी डॉ. उत्तम यादव सहित सभी कर्मचारियों ने बड़ी अहतियात से पाला था, यहां तक की कर्मचारी उसकी देखरेख में ही लगे रहते थे, कर्मचारियों ने उसे बचाने के बाद जंगल में बाघों के रहने के तरीके भी सीखाए थे। लक्की चिडिय़ाघर का पहला बाघ था जिसे कर्मचारियों ने अपने हाथों में पाला। सुबह और शाम कर्मचारी उसके साथ खेलते और खेल खेल में ही उसे जंगल में कैसे बाघ रहता है ये भी सिखाते। लक्की दर्शकों की सबसे ज्यादा पसंद का बाघ होने के साथ ही आकर्षण का केंद्र भी रहता था। वो चिडिय़ाघर का पोस्टर बन चुका है। उसकी ही एक प्रतिमा को चिडिय़ाघर के प्रतिक के तौर पर भी लगाया गया है।
इंदौर
तीन में से एक ही शावक बचा था उनकी मां से, इसलिए नाम रखा लक्की
- 18 Jan 2023