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इंदौर

धर्म-राजनीति पुराने साथी - पं. प्रदीप मिश्रा

  • 01 Dec 2022

 इंदौर में कथा की दक्षिणा मिली थी 11 रुपए
इंदौर। इंदौर में पं. प्रदीप मिश्रा मीडिया से रुबरु हुए। बुधवार को इंदौर के प्रेस क्लब में ये आयोजन हुआ। जिसमें पं. प्रदीप मिश्रा सहित विधायक संजय शुक्ला मौजूद रहे। इस मौके पर एक सवाल के जवाब में पं. प्रदीप मिश्रा ने जहां धर्म और राजनीति का पुराना साथ बताया वहीं श्रद्धा केस को लेकर भी उन्होंने बड़ी बात कही। इसके अलावा पं. प्रदीप मिश्रा संत की परिभाषा बताने के साथ ही उन्होंने बताया कि वे काफी वक्त पहले इंदौर के एक घर में भी कथा करके गए थे। उस वक्त उन्हें 11 रुपए दक्षिणा तुल्य दिए गए थे।
दरअसल, पिछले कुछ दिनों से पं. प्रदीप मिश्रा इंदौर में ही दलाल बाग में कथा कर रहे थे। बुधवार को कथा का समापन हुआ। इसके बाद वे इंदौर प्रेस क्लब में मीडिया से मुखातिब हुए। जहां उन्होंने कहा कि सारी समस्या का हल एक लोटा जल। साथ ही उन्होंने हर परिस्थिति में खुश रहने की बात भी कहीं। पं. प्रदीप मिश्रा ने मीडिया के सवालों के जवाब भी दिए।
इस सवाल के जवाब में पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि - धर्म में राजनीति और राजनीति में धर्म शुरू से चला आ रहा है। दशरथ जी महाराज, जनक महाराज के वक्त भी गुरु उनके साथ में बैठते थे। यह तो एक निरंतरता का भाव है कि कहीं ना कहीं किसी ना किसी रूप में जहां धर्म है वहां राजनीति रहती है, जहां राजनीति है वहां धर्म थोड़ा रहता है। यह तो क्रम सदा से चला आ रहा है।
ऐसा नहीं कि राजनेता किसी कथा में नहीं पहुंचते या हमारी कथा में ज्यादा आ रहे है। सभी कथाओं में जाते हैं और पूर्व में जो बड़े-बड़े संत और साधु, गुरुजन रहे है उनके चरणों में भी वे जाकर बैठे है।
संस्कारों के बल पर ही हम क्राइम को रोक सकते है - पं. मिश्रा
देश के माहौल को लेकर पं. प्रदीप मिश्रा ने कहा कि कहीं ना कहीं संस्कारों की कमी है। ऐसा नहीं है कि माता-पिता बच्चों पर ध्यान नहीं देते। अगर माता-पिता बच्चों का ध्यान नहीं देते तो श्रद्धा के टुकड़े कितने हुए ये मालूम नहीं पड़ते। एक पिता के मन में भाव जागृत हुआ कि आखिर मेरी बेटी है कहां, बस जिस पिता ने थोड़ा समय निकालने के बाद याद आया कि मेरी बेटी कहा है, वहीं पिता अगर दो या तीन दिन के अंदर भी ज्ञात कर लेते कि मेरी बेटी कहा है तो उनको अपनी श्रद्धा वापस जीवित प्राप्त होती। कहीं ना कहीं हमारे संस्कार या हमारा जो पोषण तत्व है वह हमें वहां तक नहीं पहुंचने देता। आप इंदौर में खोज लीजिए जितने भी माता-पिता है बच्चों को संस्कार देने में पीछे नहीं हटते है। सभी माता-पिता देते है, लेकिन वे उस उम्र में सीखाना चाहते है जिस उम्र में बच्चा सीखना ही नहीं चाहता। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब बांस गीला होता है तब उसे नमाओगे तो नम जाएगा और सूखा बांस नमाओगे तो टूट जाएगा। मेरा कहना है कि संस्कारों के बल पर ही हम क्राइम को रोक सकते है।