परमपिता की कृपा , पूर्वजो के आशीष, तलगाजरडी व्यासपीठ के आश्रय-सानिध्य एवम बापू की करुणामयी छत्रछाया में द्वादश ज्योरिर्लिंग रामकथा मेरी अनुभूति में दर्शन - श्रवण -स्मरण की यात्रा रही।
दर्शन अर्थात बाह्य तो रहा ही जहाँ ज्योतिर्लिंग दर्शन , विविध नगरों -राज्यो को देखते समझते गुजरे ... वही प्रमुखता से आंतरिक दर्शन की भी यात्रा रही कि किस प्रकार से स्वयं को साधते हुए आध्यत्मिक गति निष्पादित हो ।
श्रवण कथामृतम तो रहा ही लेकिन आंतरिक श्रवण भी गुंजा की मेरे माप / परिमाण / योग्यता के अनुसार बापु के सूत्रों को सहजता से आत्मसात कर आध्यत्मिक गति निष्पादित हो ।
अंततः स्मरण बढ़ते हुए "भरोसा ही भजन" जानते समझते हुए दृढ़रूपेण आध्यत्मिक गति निष्पादित हो ।
और यह सब केवल और केवल बापू की प्रेममयी - करुणामयीअनुग्रह से अनुभूत हुआ है ।
अंततः रूपेश जी की निश्छल ,निरभिमान मुस्कान , व्यास परिवार की सरलता, सतुआ बाबा का नारियालरूपी प्रेम ,मदन पालीवाल जी की प्रसन्नत्ता , के साथ रूपेश जी एवं उनकी समग्र टीम की विनय के साथ हम सब यात्रियों की सेवा सुश्रुषा का जो अद्भुत कार्य किया गया वो मेरे लिए शब्दो मे व्यक्त नही किया जा सकता है... मैं हृदय से सबको प्रणाम करते हुए उन्हें मेरी स्नेह-वंदन प्रेषित करता हूँ ।
बापू के दर्शन , बापू सूत्रों का श्रवण , बापू के स्मरण को बारंबार प्रणाम करते हुए इस अद्भुत ऐतिहासिक यात्रा को हृदय में संजोते हुए इसे एक पड़ाव की तरह स्थापित करते हुए ज्योतिलिंगो को गहन अंतरतम अनुभूत करते हुए मेरे सहयात्रियों के साथ साथ पुनः सभी को आदर - स्नेह के साथ प्रणाम करता हूँ ।
।। जय सियाराम ।।
पुष्पेन्द्र पुष्प
इंदौर
खुली चिठ्ठी
मेरे लिए यह *दर्शन-श्रवण-स्मरण की अद्भुत यात्रा

- 08 Aug 2023