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जनता कहिन

मात्र इनको तोड़ देना कोई ठोस कार्यवाही नहीं है... कारगर अन्य कानून प्रावधानों की आवश्यकता है

  • 21 Feb 2021

प्राय: इस प्रकार के समाचार पढ़ने को मिलते हैं और फिर कुछ दिनों पश्चात इसी प्रकार के समाचार पढ़ने को मिल जाते हैं। वास्तव में इस प्रकार के समाचारों पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। मात्र इनको तोड़ देना कोई कारगर कार्यवाही नहीं है। देश के अनेकों सामरिक महत्व के और संवेदनशील इलाकों में भू माफियाओं और देश के खिलाफ काम करने वाले असामाजिक तत्वों ने योजनाबद्ध तरीके से ऐसे स्थानों पर कब्जा किया है। सुनने को मिलता है कि इन स्थानों पर अवैध शराब, जुए के अड्डे , देह व्यापार एवं अनेक प्रकार की असामाजिक गतिविधियां संचालित होती हैं और इन पर काबिज गुंडे बदमाश कालांतर में राज नेताओं और अफसरों की मदद से इतने प्रभावशाली बन जाते हैं कि छोटे कर्मचारियों की हिम्मत नहीं होती कि इनकी ओर देख भी लें। अत: इस विषय में कुछ सुझाव हैं। (1) कानून बनाया जाए कि प्रति वर्ग फुट के हिसाब से जुर्मना लगाया जाए (2) जुमार्ने के अतिरिक्त कठोर सजा का प्रावधान किया जाए (2)  इस प्रकार के अपराधियों को मध्यप्रदेश की जेलों में न रख कर दूसरे प्रदेश की जेलों में ट्रांसफर किया जाए। मध्यप्रदेश के जेल मैनुअल में प्रावधान है कि यहां के बंदियों को दूसरे प्रदेशों की जेलों में ट्रांसफर किया जा सकता है। अभी कुछ समय पहले मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान चौहान ने कहा था कि ‘ममा फार्म में आ गया है और गुंडों बदमाशों को जमीन में दस फुट गाढ़ दूंगा’। ड्रग तस्कर, ड्रग माफिया, भू माफिया, मिलावट खोरों, नकली दवाओं का व्यापार करने वालों, नकली नोटों के धंधेबाजों जैसे और भी अनेकों प्रकार के गुंडों को जमीन के अंदर दस फुट में भेजने के बजाए दूसरे प्रदेश की जेलों में ट्रांसफर करने की कार्यवाही करने का निर्णय ले  लें तो प्रदेश की कानून व्यवस्था में अपने आप सुधार हो जायेगा । दुर्भाग्य से पूरे भारत वर्ष में जेलों को दिखावे के लिए ‘सुधार गृह सुधार गृह’ का खेल खेला जा रहा है। जेल विभाग कोई खाद का कारखाना नहीं है जहां शहर की गन्दगी और सड़ांध को जेल में रख दो और जब वह बाहर निकल कर आएगा तो उत्तम किस्म की खाद बनकर निकलेगा। सुधार-सुधार के नाम पर पूरे भारत वर्ष की जेलों में जो हो रहा है दिखाई नहीं देता है और प्रचार के लिए लिए वही दिखाया जाता है जिससे लगे की बंदियों के सुधार की दिशा में सरकार कितनी संवेदनशील है। वास्तविकता इसके ठीक उलट है। इस बात और तथ्य को अच्छी तरह से समझ लेना चाहिए कि सुधार की प्रकिया अनुशासन स्थापित होने के बाद प्रारम्भ होती है। मूलत: मामला जबलपुर की सरकारी जमीन को मुक्त कराने का नहीं वरन् देश में में दुर्दांत असामाजिक तत्वों को जो समाज में बेखौफ शेर बने घूम रहे हैं को वर्तमान में प्रावधानित जैल नियमों के अनुसार किस प्रकार सर्कस का शेर बनाया जाए का है।  यदि मध्यप्रदेश सरकार वास्तव में गुंडों को सबक सिखाने की चाहत रखती  है तो जेल अधिकारियों से कहे कि वे जेल मैनुअल को पढ़े और उसमे दिए गए प्रावधानों के अधीन कारगर प्रस्ताव सरकार को दें। और यदि ऐसा किया जाता है दस फुट जमीन की जरूरत नहीं पड़ेगी।  
n G.K.Agarwal 
Additional Inspector General of Prisions ( Retd.) M.P.Bhopal.