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संवाद और परिचर्चा

श्री प्रीतम सिंह ठाकुर, थानाप्रभारी - रावजी बाजार

  • 12 Mar 2022

"घर छोड़कर ना जाओ "इसके माध्यम से हमारे द्वारा महिलाओं से संवाद किया जाता है। मोहल्ले में जाकर संवाद संपर्क  किया जाता है। स्कूल में बच्चों को जाकर समझाइश दी जाती है। 


समाज को भी अपनी भूमिका  समझना चाहिए, हम किसी को ब्लेम नहीं कर रहे हैं लेकिन आप भी देखते हैं कि कोई एक्सीडेंट हो गया है। उसको पहुंचाने में मदद नहीं करते,जबकि अब तो यह हो गया है कि जो इस तरह से पीड़ित को अस्पताल पहुंचाएगा उसे यातायात प्रबंधन के द्वारा ₹5000 का पुरस्कार दिया जाएगा।

इंदौर में कमिश्नर प्रणाली लागू हुई है इससे शहर को और  आम जनता को  क्या लाभ होगा  ?
निश्चित रूप से लाभ होगा आपने देखा होगा कि शहर के 32 थाने हैं । और इंदौर में कमिश्नर प्रणाली के कारण  32 थानों में जो पुलिस बल है और हमारे जो सीनियर ऑफिसर हैं। उनकी भी नियुक्तियां  हुई है, निश्चित रूप से क्लोज मॉनिटरिंग है, इस आधार पर हम कह सकते हैं कि, इससे निश्चित रूप से इंदौर की  जनता को बहुत लाभ मिलने वाला है।

इससे  अपराधियों पर निश्चित रूप से कड़ा शिकंजा कसा जाएगा,। गिरफ्तारी अभी उतनी ही शीघ्र हो रही है क्योंकि 1-2-1 मॉनिटरिंग अपराधियों की भी हो पा रही है। 


क्या लापरवाह कर्मचारियों पर इसका कोई असर होगा डर बनेगा  ?
मेरा मानना है कि पुलिस प्रशासन का डर सिर्फ अपराधियों में होना चाहिए। जो अपराधिक गतिविधियों में लिप्त है उन पर डर पैदा होना चाहिए, बाकी जो लापरवाह कर्मचारी हैं, तो उस पर उसी समय विभागीय कार्यवाही हो जाती है उसे उस तरह का पनिशमेंट मिल जाता है।


इंदौर शहर में ड्रग्स का व्यापार बहुत फैल रहा है उस  में युवा वर्ग काफी लिप्त हो रहा है पुलिस प्रशासन कैसे कंट्रोल करेगा?
इंदौर पुलिस लगातार ही इस विषय में कार्यवाही कर रही है। इस तरह का व्यापार जहां पर है,वहां पर क्राइम ब्रांच और पुलिस विभाग द्वारा सभी थानों पर लगातार कार्यवाही हो रही है। इसमें अभियान भी चलने वाला है कि जो ड्रग एडिक्ट हो चुके हैं। यह एक बीमारी हो जाती है कि वह चाह कर भी नशे को छोड़ नहीं सकते है। उनके लिए रिहैब सेंटर के माध्यम से सुधार जैसी कार्यवाही लगातार जारी है।


ड्रग्स पर शहर में कोई बड़ी कार्यवाही जो आपको याद आती हो?
हां बिल्कुल शहर में बड़ी कार्यवाही की गई है। हमारे इंदौर की पुलिस व क्राइम ब्रांच के द्वारा बड़ी कार्रवाई की गई है। जिसमें इंदौर में 70 से 80 लोगों को गिरफ्तार किया गया, इसमें अंतर राज्य गिरोह के सदस्य भी शामिल थे उनको, पुलिस की क्राइम ब्रांच द्वारा गिरफ्तार किया गया। साथ ही विजयनगर थाना और खजराना थाना तेजाजी नगर थाना आदि स्थानों पर, तथा हमारे यहां भी  काफी कार्यवाही की गई।


क्या महिलाओं का भी अपराध में शामिल होने जैसा  दिखाई दे रहा है,  क्या कार्यवाही?
नहीं ऐसा तो नहीं कह सकते, कि महिलाओं के अपराध में लिप्तता बढ़ रही है। हमारे डीसीपी साहब  ने  join4 में एक अभियान चलाया है "घर छोड़कर ना जाओ "इसके माध्यम से हमारे द्वारा महिलाओं से संवाद किया जाता है। मोहल्ले में जाकर संवाद संपर्क  किया जाता है। स्कूल में बच्चों को जाकर समझाइश दी जाती है। इसके फायदे भी हो रहे हैं और इसमें यह भी बताया जाता है कि आप किस Age में  क्या कर सकते हैं। और इसके लाभ भी नजर आ रहे हैं, तो मैं कह सकता हूं कि महिलाओं का अपराध की तरफ बढ़ना ऐसा तो कोई रुझान समझ में नहीं आता है।


वरिष्ठ जन जो शहर के हैं उनके लिए सुरक्षात्मक दृष्टिकोण से पुलिस के क्या प्रयास होते हैं ?
वरिष्ठ जनों की सुरक्षा के लिए पुलिस के द्वारा काफी अच्छे प्रयास किए जाते हैं। और इंदौर में हमारे नोडल ऑफिसर श्री प्रशांत चौबे साहब हैं, जिनके द्वारा अच्छे प्रयास किए जा रहे हैं। उनके द्वारा सीनियर सिटीजन को कार्ड  दिया गया है, सभी जगह नंबर उपलब्ध हैं,किसी भी थाने पर कोई भी समस्या आती है । तो संबंधित थाने के स्टाफ के द्वारा उनकी समस्या का निराकरण किया जाता है। 


घरेलू हिंसा में आप किसे दोषी मानते हैं?
घरेलू हिंसा में ऐसा माना जाता है कि हर जगह अलग-अलग परिस्थितियां होती है। कहीं पर वास्तव में महिलाएं पीड़ित होती है,थोड़ा वो संकोच भी करती है, थाने आने में, शिकायत करने में, निश्चित रूप से जो अपने पैरों पर खड़ी है, जो जॉब कर रही है वह तो घरेलू हिंसा का शिकार नहीं हो पाती है। वह तो बहिष्कार भी करती है और रिपोर्ट भी दर्ज करा देती है। लेकिन जो महिला घर में रहती है या जॉब नहीं करती है उनको थोड़ा सा डर लगता है । कि एकदम से रिपोर्ट करने में उन्हें संकोच होता है। पुलिस थाने में आने में तो हम लोगों का भी है प्रयास होता है कि, हम एकदम से उनकी रिपोर्ट नहीं करते हैं। हमउन लोगों को काउंसलिंग के माध्यम से समझाने का प्रयास करते हैं। एकदम से अपराध दर्ज नहीं करते हैं। दोनों पक्षों और उनके सगे संबंधियों को बुलाकर समझाते हैं, बीच का रास्ता निकालते हैं,लेकिन कभी-कभी अपराध दर्ज भी करना पड़ते हैं। परिस्थितियों पर डिपेंड करता है कि कौन दोषी है पुरुष या महिला। अलग-अलग परिस्थितियों में दोनों दोषी हो सकते हैं।


सामाजिक बदलाव में पुलिस की क्या भूमिका होती है?
मेरा ऐसा मानना है कि  समाज को भी अपनी भूमिका  समझना चाहिए,  हम किसी को ब्लेम नहीं कर रहे हैं लेकिनआप भी देखते हैं कि कोई एक्सीडेंट हो गया है।उसको पहुंचाने में मदद नहीं करते,जबकि अब तो यह हो गया है कि जो इस तरह से पीड़ित को अस्पताल पहुंचाएगा उसे यातायात प्रबंधन के द्वारा ₹5000 का पुरस्कार दिया जाएगा। हम देखते हैं कि ऐसे अवसर पर जो वीडियो फुटेज बनाते रहते हैं।उनको मदद कर के अस्पताल नहीं पहुंचाते हैं। जो कि उनको करना चाहिए, पुलिस भी समाज से ही  आती है पुलिस के द्वारा काफी योगदान होता है।


धार्मिक उन्माद यदि होते हैं तो आप की क्या भूमिका है ?
धार्मिक उन्माद के समय अक्सर यह देखा गया है कि कभी-कभी कोई व्यक्ति विशेष द्वारा अपने व्यक्तिगत फायदे को लेकर उस चीज को क्रिएट कर देता है। सभी धर्म को अपने अपने हिसाब से धर्म के काम करना चाहिए,धर्म के अनुसार धार्मिक त्योहार आदि मनाते रहना चाहिए, मनाना चाहिए। रेलिया जुलूस आदि की व्यवस्था होती है और सभी त्योहारों पर शांतिपूर्वक हम लोगों के द्वारा व्यवस्था की जाती है। सभी के द्वारा इस तरीके प्रयास किया जाना चाहिए जिससे धार्मिक उन्माद के समय सामाजिक एकता  बनी रहे। पुलिस का हमेशा सहयोगात्मक रवैया रहता है। सभी धर्मों के प्रति हमारा सम्मान रहता है।