संतान की मन्नत पूरी होने पर पूर्णा माई की गोद में लाकर निभाई परंपरा
भैंसदेही। गुदगांव मार्ग पर ग्राम देवलवाड़ा के पूर्णा तट पर कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर पूर्णा माई मेले का आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने पुण्य सलिला मां पूर्णा के जल में डुबकी लगाकर तीर्थ स्नान कर दीप दान किया। पूर्णा के जल में नि:संतान दंपतियों ने संतान प्राप्ति के बाद अपनी मन्नत पूरी होने के कारण अपने बच्चे को पालने में लिटाकर मां पूर्णा की गोद में पालने छोड़े। दिन भर पूर्णा नदी के तट पर ललना देना मैय्या.. पलना छोडूंगी भक्तों की यह गुहार गूंजती रहीं।
पूर्णा माई मेले की पुरानी परंपरा यह रही है कि जिन दंपतियों की संतान नहीं होती, वह पूर्णा के तट पर पालना छोडने की मन्नत मांगते हैं और उनकी मुराद अवश्य पूर्ण होती है। आज भी इस परंपरा के स्वरूप यहां पर अनेक नि:संतान दंपती संतान प्राप्ति के बाद पूर्णा तट पर आकर पालना छोडते हैं। मंगलवार को अनेक नि:संतान दंपतियों ने अपनी मनोकामना पूर्ण होने के बाद मां के तट पर पावन जल में अपने लल्ला को पलना में लिटाकर पालने छोड़े।
कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर जनपद पंचायत भैंसदेही के अंतर्गत ग्राम पंचायत ग्राम काटोल के देवलवाड़ा में पूर्णा तट पर आयोजित होने वाले मेले पर मंगलवार को लगने वाले चंद्र ग्रहण का कोई असर नहीं देखा गया। ग्रहण के सूतक काल में भी क्षेत्र के सैकड़ों पूर्णा माई के भक्तों ने अपने परिवार के देवी देवताओं को ले जाकर तीर्थ कर दीपदान किया। इस वर्ष प्रशासन ने मेले की संपूर्ण व्यवस्थाओं को बेहतर ढंग से किया था। जिसका परिणाम है कि सड़क पर लगने वाले मेले के बाद भी सड़क के दोनों और पर्याप्त आवागमन के लिए सड़क मार्ग खुला हुआ था। खेत मालिकों के साथ जनपद पंचायत द्वारा मेला भरवाने हेतु उनकी जमीन का अनुबंध भी किया है जिसके फल स्वरूप मेले की व्यवस्था बेहतर हो गई है। कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर प्रतिवर्ष लगभग 15 दिनों के लिए संपूर्ण धार्मिक मेले का आयोजन किया जाता है। जिसमें महाराष्ट्र प्रांत से एवं मध्यप्रदेश के कोने-कोने से श्रद्धालु पूर्ण सलिला मां पूर्णा के पावन जल में तीर्थ करने आते हैं।
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नदी की धार के बीच पालने में ललना
- 14 Nov 2022