पुलिस को अपराधियों में खौफ पैदा करने के लिए कमिश्नर प्रणाली एक अच्छा टूल है, इस टूल का बेहतर तरीके से उपयोग करके निश्चित तौर पर अपराधियों पर अंकुश लगाया जाएगा तो कुल मिलाकर जनता को ही राहत मिलेगी ।
जो विधायक सांसद या जनप्रतिनिधि है उनके साथ हमारा संवाद होता ही रहता है l उन्हें हमारी और हमें उनकी जरूरत रहती है, यह संवाद सेतु बना रहता है तो आई डोंट नो इसे हस्तक्षेप कहा जाए? क्योंकि कानून सबके लिए एक बराबर का है किसी को थोड़ा बहुत तो आप ओब लाइज कर सकते हैं, बट किसी को कानून से परे जाकर लाभ देने की कभी कोई अधिकारी प्रयास नहीं करता है l
"3P" अर्थात "पुलिस प्रेस प्रॉसिक्यूटर तीनों मिलकर ही आपराधिक प्रदूषण कम कर सकते हैं और इसमें तीनों के जो अपने-अपने रोल है उसे अगर हम ईमानदारी से अदा करे तो निश्चित रूप से जनहित के लिए अच्छा काम होगा l
DGR @ एल.एन.उग्र (PRO )
इंदौर में कमिश्नर प्रणाली जो लागू हुई है उसे आप किस नजरिए से देखते हैं ?
मिश्नर प्रणाली ही अर्बन पुलिसिंग का मॉड्यूलर है। अर्बन पुलिसिंग के लिए तो पुलिस आयुक्त और उसकी पद संरचना ही बेसिक है, बहुत जरूरी हो जाता है जब कोई भी शहर जब महानगर का रूप ले लेता है, तो यह अच्छा है। काफी दिनों से यह था इसके लागू हो जाने से लोगों को काफी सुविधा प्राप्त होगी। कानून व्यवस्था और लोक व्यवस्था कायम करने में भी काफी मदद मिलेगी। काफी पावर ऐसे हैं जिनके लिए दूसरी एजेंसियों पर निर्भर करना पड़ता था। वह पुलिस के हाथ में होगी तो निश्चित ही त्वरित निर्णय लेकर और बेहतर पुलिसिंग दे पाएंगे।
आम जनता को इस से कितना लाभ मिलेगा ?
इससे आम जनता को बहुत लाभ मिलने वाला है इसलिए मिलने वाला है कि जो अपराधिक तत्व है वै जब अपने सीमित दायरे में आएंगे,जब बा उंडेशन होगा, उनका डिटेंशन सेंटर जेल में भेजा जा सकता है। तो इससे दूसरी और जो व्यक्तिगत अपने कार्यक्रमों के लिए कार्यपालिक मजिस्ट्रेट के पास जाना होता था, उन पर निर्भर होते तो उससे उनकी निर्भरता भी खत्म होगी।
अपराधियों पर खाकी का खौफ और बढ़ेगा इस पर आप क्या कहना चाहते हैं ?
देखे जैसा कि महाकवि तुलसीदास जी ने कहा था कि" भय बिन प्रीत ना हो गोसाई " जब तक अपराधियों पर खौफ नहीं होगा तो अपराधियों को भी अपराध से दूर रखने में कठिनाई महसूस होगी। तो सामान्य रूप से अपराधियों पर पुलिस का अपना खौफ और आम जनता पर अपना विश्वास पैदा कर सके और यह कर पाती है,तो पब्लिक को हमेशा लाभ मिलता है।
इंदौर में ड्रग्स का काला बाजार बहुत बढ़ रहा है,उसमें युवा वर्ग बहुत लिप्त हो रहा है, इस पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
कई सारी चीजें हैं जो युवाओं को प्रभावित करती है, कम उम्र ही ऐसी होती है। तो निश्चित तौर पर महानगर में उन्हें बहुत सारी चीजें उपलब्ध होती रहती है। हम लोग अपने नेटवर्क के सहारे ड्रग्स पर नकेल कसने का पूरा प्रयास कर रहे हैं और दूसरी और युवाओं को प्रेरित करने का भी प्रयास कर रहे हैं, कि इन नशे की चीजों से दूर रहे, उनके लिए कैंपेनिंग भी की जा रही है, लगातार दोनों ही ओक्सेप्ट पर पुलिस काम कर रही है। ड्रग्स नेटवर्क को ध्वस्त करने के लिए लगातार मुखबिर तंत्र का सहारा लेकर कैसेस भी रजिस्टर्ड किए जा रहे हैं। दोनों ही दिशा में काम करेंगे तो आगे चलकर अच्छे परिणाम प्राप्त होंगे ।
पुलिस प्रशासन को राजनीतिक हस्तक्षेप का कितना सामना करना पड़ता है ?
मैं इसे राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं कहूंगा मेरे 22 साल की सर्विस में कहीं हस्तक्षेप तो नहीं मिला। लेकिन ऐसा नहीं कह सकते कि किसी राजनीतिक प्रतिनिधि का फोन न आता हो। राजनीति के लोग हैं,सरकार में है, सामाजिक कामों से जुड़े हुए हैं, लोगों केी उन तक पहुंच होती है, जनप्रतिनिधि होते हैं लोगों की समस्याएं सुनते हैं। उसके निराकरण के लिए वे प्रशासनिक अधिकारियों को फोन करते हैं,तो हस्तक्षेप तो नहीं है लेकिन पैरेलल है। लोगों की समस्याओं से वह भी दो-चार होते हैं तो हमें फोन लगाते हैं, मुझे हस्तक्षेप जैसा नहीं लगता है, जिस काम के लिए उनका फोन आया है वह करने जैसा होता है तो निश्चित रूप से करते हैं। जो करने लायक नहीं होता है तो उसके लिए उन्हें शालीनता से समझा भी दिया जाता है।
बाल अपराध को सुधारने के लिए आपके पुलिस के क्या प्रयास होते हैं?
बाल अपराध सुधार में सुधार लाने के लिए जहां भी बच्चों की इकाई होती है स्कूल होते हैं, वहां पर जाकर बच्चों को हम प्रेरित करते हैं कि आदमी की नजर पहचानना सीखें और बच्चों को गुड टच बैड टच के बारे में समझाते हैं। तो एक ओर अवेयरनेस कैंपेनिंग करते हैं, दूसरी और कहीं ऐसी कोई रिपोर्ट आती है उस रिपोर्ट की कनशन में हम लोग सजग रहते हैं।
इंदौर में स्पा केंद्रों के नाम से जो घटनाएं हो रही है उस पर आपकी क्या टिप्पणी है और कितना नियंत्रण हुआ है ?
देखिए कितना नियंत्रण हुआ है इसमें मैं आकलन नहीं कर सकता। मैं जिस थाना क्षेत्र को रिप्रेजेंटेड करता हूं उसे थाना क्षेत्र में स्पा जैसी कोई घटना नहीं हुई है। लेकिन पुलिस ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए सदैव कार्यवाही करती ही रहती है
घरेलू हिंसा में आप किसे दोषी मानते हैं ?
घरेलू हिंसा में मैं पुरुष को दोषी मानता हूं, कारण यह है कि एक मनोविज्ञान है आदमी कमजोर पर ही वार करता है, जुल्म करता है। चाहे समाज का संपन्न वर्ग हो, ऊंची जाति का वर्ग हो, जवान हो, कमजोर पर आदमी ही वार करता है। बच्चे बुजुर्ग और महिलाएं निश्चित तौर पर समाज के कमजोर वर्ग हैं और कमजोर पर तो जुल्म किए ही जाते हैं और होते ही रहे हैं। इसीलिए कानून हमेशा कमजोर के साथ खड़ा रहता है। क्योंकि फरियादी और आरोपी की जो अवधारणा है । कि जो फरियादी है वह कमजोर है आरोपी जो है वह सशक्त भी है। घरेलू हिंसा भी इससे भिन्न नहीं है, घरेलू हिंसा में भी महिला कमजोर पक्ष है, महिलाओं पर पुरुषों की प्रधानता को सार्वभौमिक रूप से सारा देश ही स्वीकार करता है,तो में बताना चाहता हूं कि पुरुष अपने मद में चूर रहता है, तो घरेलू हिंसा में पुरुष का ज्यादा अहम भाग रहता है। अगर वह थोड़ा सा संयम बरतें अपनी मर्यादा में रहे, तो घरेलू हिंसा के केसेस कुछ कम होंगे। दोनों तरफ जिम्मेदार है लेकिन मेरे द्वारा जो ऑब्जर्व किया है उसमें पुरुष की प्रधानता ज्यादा लगती है ।
आदतन अपराधी जब आपके सामने आते हैं तो आपकी क्या प्रतिक्रिया रहती है ?
देखिए आदतन अपराधी दो तरह के होते हैं और दोनों के लिए रवैया थोड़ा भिन्न हो जाता है। एक आदतन अपराधी ऐसा होता है जो है हैवीचलअफेंडर है, उसे लगातार वारदात करना होता है, वह करता ही जाता है एक लगातार जो अपराध कर रहा है उसके प्रति थोड़ा सख्त रवैया रहता है और जिसका लंबे अंतराल के बाद किसी कारणवश कोई अपराध रजिस्टर्ड होने जा रहा है, तो उसके प्रति थोड़ा सा नरम रुख रहता है। लेकिन दोनों ही पक्ष में लेंस लगाकर जरूर देखते हैं कि क्या कारण रहा ।
सामाजिक बदलाव में पुलिस की क्या भूमिका होती है ?
सामाजिक बदलाव में पुलिस की बहुत वृहद भूमिका है जब कभी किसी सोसाइटी में कुछ नए चेंजेज आते हैं तो वहां पुलिस को अगवा रहना पड़ता है। कोई व्यवस्था निर्मित करना होती है तो वहां पुलिस को अगवा रहना पड़ता है। हमारी अनिवार्यता यानी कि पुलिस की अनिवार्यता सभी जगह सभी क्षेत्र में है। जब सारा देश एक ताले में बंद हो चुका था, उस समय सिर्फ पुलिस थी जो रोड पर थी, तो सामाजिक रूप से कोई भी परिवर्तन आता है कोई भी व्यवस्था लागू होती है तो उसमें पुलिस का बहुत महत्वपूर्ण रोल हो जाता है और वह समय-समय पर बदलता रहता है। आपातकाल में हम हेल्पर के रूप में काम करते हैं और सामान्य दिनों में हम दांडिक प्रक्रिया के तहत काम करते हैं और जो तीसरा पहलू हमारा होता है गश्त के रुप में,जब सारी दुनिया सोती है तो रात में उनकी प्रॉपर्टी आदि की सुरक्षा के लिए रखवाली के लिए रात में जागते हैं। तो सामाजिक बदलाव की जहां भी बयार चलती है,तो पुलिस को जो दायित्व सोपें जाते हैं वह काम करती है और कुल मिलाकर पुलिस का बहुत महत्वपूर्ण रोल है ।
आपके थाना क्षेत्र में चोरी डकैती लूटपाट स्नैचिंग कि आज की तारीख में क्या स्थिति है ?
पिछले वर्ष की तुलना में एक सवा महीने की आंकड़ों की अगर तुलना की जाए तो निश्चित रूप से वह आंकड़ा 2020 और 2021 की तुलना में कम ही है ।
न्याय प्रक्रिया में पुलिस का कितना सहयोग या उनकी भूमिका होती है क्या रोल रहता है ?
न्यायालय प्रक्रिया में शुरू से लेकर आखिरी तक पुलिस का महत्वपूर्ण रोल होता है। पुलिस से अपने आपको यह सोच कर इतिश्री नहीं कर सकती की किसी मामले में अभियोजन प्रपत्र तैयार कर दीया न्यायालय में चालान पुट अप कर दिया। गवाह को कोर्ट तक पहुंचाने की, गवाह को सुरक्षा प्रदान करने की, मुलजिम को माननीय न्यायालय में उपस्थित कराने की,हर चरण में, मतलब एक केस रजिस्टर्ड होने से आरोपी को सजा हो जाने तक न्यायालय के साथ ही पेरेलल काम करना होता है।
"3P" अर्थात "पुलिस प्रेस प्रॉसिक्यूटर के समन्वय पर आप क्या विचार रखते हैं ?
तीनों का ही समाज के प्रति बड़ा महत्वपूर्ण जवाबदेही है क्योंकि अगर तीनों ही सकारात्मक पहलू को सदैव सामने लाने का प्रयास करेंगे तो उसे न केवल पॉजिटिविटी आएगी बल्कि जो सफाई का काम है जिसे हम कहते हैं, यह प्रदूषण अलग अलग तरह का होता है। एक आपराधिक प्रदूषण होता है, तो प्रदूषण को जो मुक्त किया जा सकता है। तो तीनों मिलकर ही आपराधिक प्रदूषण कम कर सकते हैं और इसमें तीनों के जो अपने-अपने रोल है उसे अगर हम ईमानदारी से अदा करे तो निश्चित रूप से जनहित के लिए अच्छा काम होगा।
समाज के लिए आप कोई संदेश देना चाहेंगे?
समाज के लिए मैं यही संदेश देना चाहता हूं कि
"इंसान का इंसान से हो भाईचारा"
" यही संदेश हो आज तो हमारा "
और
"जोत से जोत जलाते चलो"
"प्रेम की गंगा बहाते चलो" l