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ओशो - 'अपने ही शब्दों से लड़ने वाला वह आदमी, जिसे परिभाषित करना असंभव है'

  • 11 Dec 2025

भारत की धरती पर एक व्यक्ति ऐसा भी हुआ जिसने न किसी धर्म को स्वीकार किया,न किसी जाति, न किसी वर्ण को।
न किसी विचारधारा की कैद में रहा,
न किसी संस्था का गुलाम बना।
वह व्यक्ति था — आचार्य रजनीश ओशो।
वह अकेला ऐसा आदमी था जो अपने ही शब्दों से लड़ता था, क्योंकि उसका मानना था कि जीवन प्रतिपल बदलता है।जब जीवन बदल रहा है, ऊर्जा बदल रही है, चेतना बदल रही है—तो तुम पुरानी धारणाओं को क्यों पकड़े बैठे हो?
ओशो ने 5000 वर्षों से ढोए जा रहे भ्रामक पत्थरों को एक-एक करके तोड़ा।
उन्होंने हर पाखंड पर प्रहार किया—धर्म का हो, राजनीति का हो, समाज का हो या स्वयं का हो।
ओशो बेबाक थे—इतने बेबाक कि
उन्हें इस बात का भी डर नहीं था कि—
कौन नाराज होगा
कौन उनका विरोध करेगा
कौन उन्हें गलत साबित करेगा
कौन उनका चरित्र हनन करेगा
कौन उन्हें मारने की साजिश करेगा
वे जानते थे कि सत्य बोलना समाज में विद्रोह पैदा करता है।
लेकिन उन्होंने हर बार सत्य को चुना।
दुनिया में ऐसा कोई विषय नहीं जिस पर उन्होंने बात न की हो।
गणित से लेकर विज्ञान तक, गीता से लेकर कुरान तक, बुद्ध से लेकर ईसा तक, सेक्स से लेकर समाधि तक —
हर विषय पर उनकी पकड़ इतनी गहरी कि 
ओशो की व्याख्या सुनकर सोचते हैं कि
“हम इतने साल क्या पढ़ते रहे?”
क्योंकि ओशो उस गहराई तक जाते हैं कि पढ़ने वाला हिल जाता है।
ओशो को किसी भी रूप से परिभाषित नहीं किया जा सकता।
वह एक “व्यक्ति” नहीं —
एक ऊर्जा,
एक विद्रोह,
एक आईना,
और एक क्रांति थे।
उन्होंने सिर्फ समस्याएँ नहीं बताईं — समाधान भी दियासही बताने का जोखिम सिर्फ OSHO ने उठाया।
इसलिए लोग उन्हें सुनने से डरते हैं।
क्योंकि उनकी बातों को मानना—
समाज से विद्रोह करना है।
नकाब उतारना है।
झूठ छोड़ना है।
और सबसे कठिन काम — 
खुद से सामना करना है।
आज वे श्रीकृष्ण पर प्रहार करते हैं…
और कल उनकी सबसे गहरी व्याख्या करते हैं।
आज वे श्रीराम की आलोचना करते हैं…
और अगले ही प्रवचन में उनकी महानता को समझाते हैं।
यह उनकी सबसे बड़ी विशेषता है —
ओशो किसी एक लाइन पर नहीं चलते।
वे दोनों पक्षों को समान दृष्टि से देखते हैं।
और यही बात आम आदमी को सबसे कठिन लगती है।
क्योंकि हम या तो अंधभक्त होते हैं या अंधविरोधी।
ओशो दोनों से मुक्त थे।
उनके जैसा कोई नहीं — और कभी कोई होगा भी नहीं
ओशो एक ऐसे दर्पण थे जिसमें खुद को देखने की हिम्मत बहुत कम लोग रखते हैं। उनकी बातों ने लाखों लोगों को झकझोर दिया, बदल दिया, नया बनाया।
आज उनका जन्मदिन है,
“उन जैसा कोई नहीं था, है, और कभी होगा।”
उनकी बातों में आग है,
उनकी दृष्टि में क्रांति है,
और उनके शब्दों में मुक्त होने की कुंजी।
Osho ! प्रणाम !! 
भावपुष्प समर्पयामि!!!
साभार