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इंदौर

डीआरटी ने कोर्ट में हुकमचंद मिल की जमीन के आरक्षित मूल्यांकन को बताया सही

  • 07 Sep 2022

मिल की जमीन की कीमत बढ़ने के बजाय कम कैसे हो गई, के सवाल पर डीआरटी ने कोर्ट में दिया जवाब
इंदौर। हुकमचंद मिल की जमीन के मामले में मंगलवार को वसूली न्यायाधिकरण मुंबई (डीआरटी) ने परिसमापक के उस आवेदन पर जवाब दे दिया जिसमें सवाल उठाया गया है कि मिल की जमीन की कीमत बढ़ने के बजाय कम कैसे हो गई। डीआरटी ने एक बार फिर जमीन के आरक्षित मूल्यांकन को सही बताते हुए कहा है कि आरक्षित मूल्य निकालने की प्रक्रिया का पूरा पालन करने के बाद ही अंतिम आरक्षित मूल्यांकन जारी किया गया है। खरीदार इससे ज्यादा मूल्य की बोली लगा सकते हैं। आरक्षित मूल्यांकन में कोई अनियमितता नहीं हुई है। हाई कोर्ट अब इस मामले में 13 सितंबर बहस सुनेगी।
गौरतलब है कि हुकमचंद मिल प्रबंधन ने मिल को 12 दिसंबर 1991 को अचानक बंद कर दिया था। जिस वक्त मिल बंद हुआ था, उस वक्त उसमें 5895 मजदूर काम करते थे। मिल बंद होने के बाद से ये मजदूर अपने हक के लिए न्यायालयों में भटक रहे हैं। कोर्ट ने 2007 में मजदूरों का मुआवजा 229 करोड़ रुपये तय किया था। इस रकम का भुगतान मिल की जमीन बेचकर होना है, लेकिन बार-बार निविदा जारी करने के बाद भी जमीन बिक नहीं पा रही। छह वर्ष पहले भी मिल की जमीन की निविदा जारी हुई थी। उसमें जमीन का आरक्षित मूल्य 400 करोड़ रुपये रखा गया था।
पहले आरक्षित मूल्य ज्यादा बताया था
हाल ही में डीआरटी ने जमीन बेचने के लिए एक नई निविदा जारी की थी। इसमें आरक्षित मूल्य 385 करोड़ रुपये रखा गया था। इसका विरोध हो रहा है। मजदूरों का कहना है कि छह वर्ष पहले जमीन का आरक्षित मूल्य 400 करोड़ रुपये रखा गया था। छह साल में कीमत बढ़ने के बजाय कम कैसे हो सकती है। परिसमापक की तरफ से भी आरक्षित मूल्य कम रखे जाने पर आपत्ति ली गई है।