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इंदौर

बरसों तक रहे भिक्षुक , अब खुद का कारोबार कर बन गए मददगार

  • 07 Oct 2022

बरसों तक रहे भिक्षुक , अब खुद का कारोबार कर बन गए मददगारकोई सब्जी बेच रहा तो किसी ने सजाई खिलौनों की दुकान
इंदौर। परदेशीपुरा के भिक्षुक पुनर्वास केन्द्र अब यहां के लोगों को रोजगार से जोडऩे में लगा हुआ है। लगातार कौंसलीन से अब उनके जीवन में भी बदलाव की बयार आने लगी है। जीवन की दुश्वारियों से हार मानने वाले सकारात्मक बदलाव की चलती-फिरती इन कहानियों से मिलें और भरोसा रखें कि अच्छा वक्त कभी भी आ सकता है।
कहानियों के किरदार ऐसे लोग हैं, जाते हैं। जो पहले शहर के चौराहों पर भीख मांगते थे। हर जगह दुत्कार उनका नसीब बन चुका था। भिक्षुक पुनर्वास केंद्र ने जरा सी दिशा दी और आज बड़ा बदलाव यह है कि ये लोग भिक्षुक नहीं, कारोबारी कहे।
 भिक्षुक पुनर्वास केंद्र की टीम भिक्षुकों का रेस्क्यू कर उन्हें प्रशिक्षण देती है। हमें खुशी है कि ये लोग भिक्षावृति छोड़कर खुद का व्यवसाय करने लगे हैं। हमने पहले इनसे ठेला लगवाकर देखा। जब हमें लगा कि ये काम कर सकते हैं तो लोन स्वीकृत करवाया।
प्रशिक्षण दिया और केंद्र की गारंटी पर इन्हें 10 हजार रुपए का लोन स्ट्रीट वेंडर योजना में दिलाया। इन्हें काम करते हुए करीब दो महीने हो गए हैं। अब ये लोग जरूरतमंदों की मदद करने लगे हैं। आंध्रप्रदेश के चिन्ना तीन साल तक कई राज्यों में भटके भटकते हुए इंदौर आ गए। हिंदी नहीं आती थी। भिक्षुक पुनर्वास केंद्र पर केयर टेकर की नौकरी दी
मकान हड़पे जाने के बाद संजय यादव सोनी डिप्रेशन में चले गए थे। पेट भरने के लिए भीख मांगने लगे। बाद में एमवाय अस्पताल परिसर को ठिकाना बना लिया। मिलक पुनर्व का केंद्र की टीम ने रेस्क्यू किया और हरीश समझाइश के बाद प्रशिक्षण दिया।
पारिवारिक कलह में राजेश गुप्ता ने घर छोड़ा और भीख मांगकर गुजारा करने लगे। चिडिय़ाघर के सामने से टीम ने रेस्क्यू किया। राजेश सेवा में ही बाकी जीवन पहले ठेला लगाकर सब्जियां बेचते थे। टीम ने लोन
हरीश ने पहले सोने और फिर खिलौनों का काम किया था। टीम ने लोन दिलवाया तो हरीश अब लेदर के हाथी, घोड़े आदि बेचते हैं। हरीश कहते हैं- अब मैं अपनी कमाई का हिस्सा, उन लोगों के लिए दान करता हूं, जो भीख मांगते हैं।